सहेली से प्यार
"मैं प्रीती को कॉलेज के समय से जानती हूं. मुझे हमेशा से पता था कि वह कुछ अलग है- छोटे बाल, मोटरसाइकिल चलाना और ढीले-ढाले कपडे पहनना उसे पसंद था. उसने कभी भी लड़कियों 'वाली' बातें करने में दिलचस्पी नहीं दिखायी. बाकियों को वो अजीब लगती थी, जबकि मुझे लगता था कि उसमे कुछ बात है.
हम लड़कों और सेक्स के बारे में बातें ज़रूर करते थे, लेकिन उसने कभी भी मुझे यह नहीं बताया कि वो किसको डेट कर रही है. मैंने भी जानने की ज़्यादा कोशिश नहीं की, क्योंकि मैं उसकी निजी ज़िंदगी में दखल नहीं देना चाहती थी.
उस दिन वह आधी रात के बाद अचानक ही मेरे घर आ धमकी. वह बेहद नशे में थी और भावुक भी. रोते-रोते उसने मुझे बताया कि अभी-अभी उसका चार साल पुराना अफेयर टूटा है. मेरे कई बार पूछने पर भी प्रीती ने उसका नाम नहीं बताया. मुझे अपनी सहेली की हालत पर तरस आ रहा था. मुझे केवल यह पता था कि इस मुश्किल घड़ी में मुझे बस उसका साथ देना है. किसी तरह समझा-बुझा कर मैंने उसे घर भेजा.
'दूर रह इस लड़की से वरना एक दिन यह हम सबको ले डूबेगी,' मां ने बड़े ही गुस्से से कहा था. प्रीती की लड़कों जैसी आदतों की वजह से बाकी सहेलियां भी उससे दूर रहती थीं. पर मैं उसे बोल्ड और आज के जमाने की मानती थी.
प्रीती मेरी हर बात मानती थी. हम दोनों की दोस्ती ऐसी जैसे एक सिक्के के दो पहलू. पर न जाने उसका मुझसे अपने बॉयफ्रेंड का नाम छुपाना खल गया. पर मैं खुश थी कि उसका ब्रेकअप हो गया. अब हम दोनों एक साथ ज्यादा समय बिताने लगे. वो शांत रहने लगी.
'सोनिया आज मैं तुम्हारे घर पढ़ने आऊंगी वरना फेल हो जाऊंगी,' प्रीती का फोन आया. पढ़ते-पढ़ते आधी रात हो चुकी थी और हम सो गए. अचानक किसी के चुंबनों की बौछार से मेरी आंखें खुल गईं. उसकी आंखों में एक अजीब सा नशा था. वह एक प्रेमी की तरह मुझे चूम रही थी. न जाने क्यों मैं ने उसे नहीं रोका. भीतर अजब सी खुशी की लहर दौड़ रही थी, जैसे जिसकी चाह थी वह मिल गई.
अब मैंने भी प्रीती का साथ देना शुरू कर दिया. फिर एक औरत मर्द के बीच जो होता है, वह हम सहेलियों के बीच हुआ. हमें पता चल गया कि हम दोनों समलैंंगिक हैं. इससे पहले उसने कभी इस बात का ज़िक्र नहीं किया था. उसे पता था कि मेरी परवरिश एक रूढ़िवादी कैथोलिक परिवार में हुई है और शायद वह मुझे खोना नहीं चाहती थी.
मेरा परिवार धार्मिक विचारों वाला कट्टर कैथोलिक था. पादरी और बाइबिल दोनों ही समलैंगिकता को मान्यता नहीं देते. उनकी नज़र में यह निंदनीय है. पर हमें इस बात की परवाह नहीं कि आगे क्या होगा. आज हम बेहद खुश हैं, यही काफी है.
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